Lalita Vimee

Add To collaction

औरत, आदमी और छत , भाग 37

भाग,37

आप हर जगहं इतना ओवररियेक्ट क्यों करते ह़ैं वीरेन, य हाँ पूरा परिवार है हमारा, बच्चे हैं। 

ठीक  है, ठीक है, तू ज्यादा टेंंशन मत लिया कर मैं भी कोई उसे शूट नहीं कर रहा था।कोई मेरी बीवी को घूरेगा तो गुस्सा तो आयेगा ही ना।

प्लीज़ वीरेन।

अच्छा तूने कुछ लिया क्यों नहीं अपने और बच्चों के लिए।

मुझे कुछ पसंद ही नहीं आया।

मतलब तुझे इतने बड़े शहर से कुछ पंसद नहीं आया, या दिमाग में कुछ औरचलरहा है।

आप तो हैं न साथ में तो आप ही क्यों नहीं खरीद लेते, बच्चे भी हैं आपके साथ। 

हर बात पे ओवररियेक्ट खुद कर रही हो।

अच्छा चले वरना वो लोग सोचेंगे कि हमारे साथ शापिंग पर आयें हैं या,इधर उधर टहलने।

रूपा दीदी की शापिंग पूरी हो ग ई थी। मिन्नी कुछ नहीं खरीद पाई थी,उसे कुछ पंसद ही नहीं आया था। दो दिन बाद दीदी ने गाँव में आने को बोला था।वो अपने पति के साथ अपनी गाड़ी में चली गई थी। रीति और डुगू को वापिस छोड़ कर  वीरेंद्र और मिन्नी भी घर आ गये थे।पहुंचते पहुंचते शाम के सात बज ग ए थे।
           माँ अपने बहू बेटे को देखकर बहुत खुश हुई थी।मिन्नी आते ही नहाने घुस ग ई थी। वो नहाकर निकली तो,उसने देखा एक तरफ सेब और केलों की दो छोटी छोटी टोकरियां रखी हैं ।
ये इतने किसलिए माँ?
कल तुम्हारे बाऊजी का श्राद्ध है और  अमावस्या भी हे।तुम्हारी भी तबियत ठीक नहीं है, तो मैंने सोचा कि मंदिर म़े भिजवा दूंगी।
जब मैं वापिस ही आ ग ई हूँ तो सब वैसा ही होगा जैसे पहले होता था।
मिन्नी ने चाय रख दी थी, वीरेंद्र गाड़ी लेकर बाहर निकल गया था। चाय पीकर मिन्नी ने दोबारा फिर कपड़े बदले व आटो से बाज़ार चली ग ई थी।उसे पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि माँ के अंदर भी कुछ दरक सा गया है।  उसने कल दान करने के लिए बाँऊजी के नामित कपड़े चप्पल वगैरह खरीदे थे। कल के दिन  घर में खीर और हलवा जरूर बनता था।आर्मी से रिटायर्ड बाँऊजी को घर का बना खाना और मीठा बहुत पंसद था। माँ ऐसा बताती हैं , वो भी माँ की भावनाओं का सम्मान करते हुए हर आमवस्या पर मंदिर म़े बाँऊजी की पंसद का खाना भेजने के साथ दो चार जरूरत मंदों को भी ये खाना भिजवाती थी।
ये सब खरीदते खरीदते नौं बज ग ए थे। घर पहुंची तो गाड़ी खड़ी थी इसका मतलब वीरेंद्र प हुंच चुके थे।
तूं समझती क्या है अपने आपको, कोई काम था तो मुझे बता देती, सड़क पर कहीं गिर पड़ जाती तो,  फिर तेरी औलाद के डायलॉग सुनो,आप हमारी मंमा का केयर नहीं करते,हम अलग रह लेंगे।
     आप तो आते ही चले गये थे कल बाँऊजी का श्राद्ध है। सामान तो लाना ही था, और अब मैं ठीक हूँ।

वीरेंद्र अंदर बड़बड़ाता र हा था।कमला ने खाना तैयार कर लिया था।मिन्नी ने माँ को दवाई दी थी। 

वीरू गुस्सा कर रहा था मिन्नी

उ़न की तो आदत है  माँ और फिर  थोड़ी लेने के बाद उन्हें मेरे में कमियां ही दिखने लगती हैं। मैं खाना  लगा देती हूँ उनका।
हाँ खिला दे बेटी, तेरे जाने के बाद तो बस दारू और चाय,और कुछ नहीं लिया इसने।
मिन्नी खाना लेकर जाती है तो वीरेंद्र  बोला उसी कमला ने बनाया होगा मुझे नहीं खाना।

मैं बना कर लाई हूँ खाकर  तो देखो।

मिन्नी ने उसके लिए थोड़ा पनीर मसाला बना दिया था, फटाफट बनी ये सब्जी उसे लगती भी बहुत अच्छी थी।
  तूने खाया?
आप खायें माँ को खिलाया है अभी खा लूंगी, सुबह की तैयारी भी करनी है।

मैं बाहर से मंगवा दूंगा सब।

सब हो गया है, आप खाना खायें।

कमला के साथ मिल कर सब करते करते साढे दस.बज गये थे। उसे दवा भी लेनी थी।तभी वीरेंद्र फिर चिल्लाया था।

क्या कर रही हो?

आप बतायें.क्या चा हिए?

तू चाहिए  मुझे।

वीरेन हमारी बात हुई थी न कल, जिस दिन आप शराब पीयेंगे मैं माँ के कमरे मे सोऊँगी,और आप सहमत भी हुए थे। आपके पीने के बाद मुझे घबराहट होती है डर लगता है आपसे,वायलेंट हो जाते हैं आप।

अच्छा मैडम तो अब  हम आपको वायलेंट  लगने लगे हैं, सारी उम्र तुम्हारी इस वायलेंट के पहलु में ही गुजरी है।

वो वक्त और था चौधरी साहब,तब मैं  दिलो दिमाग़ से इतनी कमजोर नहीं थी जितनी अब हो ग ई हूँ।अब मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं बची।मुझ से कुछ भी बर्दाश्त नहीं होता।

सो जा यहीं कुछ नहीं कहूंगा,मुझे भी अकेले नींद नहीं आती।

मिन्नी निरूतर हो ग ई थी। सो जायें आप आती हूँ थोड़ा सा और निपटा कर।

सो जा अब ज्यादा करेगी तो फिर बीमार हो जायेगी, लाईट आफ कर दे नींद आ रही है बहुत थक गया हूँ।

अच्छा मैं किचेन बंद कर के आती हूँ।

वो आकर लेटी ही थी कि उसे भी नींद आ ग ई। सुबह चार बजे के अलार्म ने जैसे जबरन जगा दिया था उठने के बाद भी उठने को जी नहीं चाह रहा था।

सात बजे तक सब तैयार हो गया था।वीरेन्द्र को  उठाया था उठ कर थोड़ा जल्दी तैयार हो जायें।  

यार नींद आ रही है सोने दे।

उठ जायें वीरेन पूजा के बाद सो जाना।उठो चाय पी लो। अनमने से उठकर वीरेंद्र ने पूजा की थी।

माँ को साथ लेकर मिन्नी और वीरेंद्र गाड़ी लेकर मंदिर  गए थे, फिर वहाँ मंदिर में खाना देने के बाद भिखारियों को भी उन्होंने कुछ न कुछ दिया। मिन्नी के कहने पर  वीरेंद्र  बेसहारा पशुओं की  शाला में भी गया, वहाँ उनके लिए चारा वगैरह  डलवाया। घर आकर मिन्नी ने गली के कुत्तों को भी खाना खिलाया। वैसे तो मिन्नी को गली के कुत्तों से शुरु से ही स्नेह रहा है वो जहाँ भी रहती ,ये उसके दोस्त बन जाते। बेसहारा होने के दर्द को मिन्नी से ज्यादा कौन समझ सकता था।

      वीरेंद्र उन को घर छोड़ कर आफिस आ गया था। दोतीन दिन से आफ़िस का  काम बिल्कुल अस्त व्यस्त हो रखा था। रोहित के क ई फोन आ चुके थे।।

माँ गाँव मे कुलदेवता पर दीपक जलाने के लिए गाँव चली ग ई थी। शाम को या फिर कल आऊँगी बेटा फोन कर दूंगी।
कमला भी खाना खाकर और लेकर घर चली ग ई थी। मिन्नी ने डि़की से बात की और सो ग ई थी। फोन सायलेंट पर ही था। क्योंकि नींद की दवा की वज़ह से उसे और नींद की आवश्यकता थी।  उसकी नींद गेट पर बजी जोर की घंटी से खुली थी। दोपहर के ढाई बज चुके थे। वीरेंद्र खाना खाने आया था।

कैसी तबियत है तेरी?

ठीक हूँ। बस नींद आ ग ई थी। 

खाना लगा दूं?

तूने खाया?

मैं सो ग ई थी वीरेन आते ही,नींद की वज़ह से अजी़ब सा  हो रखा था।

ले आ दोनों के लिए ले आ ।

मिन्नी खाना लेकर आती है तो वीरेंद्र उसे याद दिलाता है कि परसों गाँव भी चलना है। दीदी वहीं आयेगी। तब तक तुम अपनी मेरी और बच्चों की शापिंग करलो।

जहाँ और जब चलना हो बता देना, ले चलूंगा, और कल डाक्टर से भी मिलना है, सुबह ही तैयार हो जाना।

         शापिंग  मैं अकेले कर लूंगी, आप परेशान होंगे।

अकेले कहीं नहीं जाना, जहाँ जाना हो बता देना,वरना।
वरना का मतलब एक तनाव मिन्नी बखूबी समझती थी।

खाना खाकर वीरेंद्र लेट गया था,मिन्नी ने एक दो जगहं  फोन किए थे ,शादी के कपड़ों को तैयार करने के लिए। एक लेडीज़ टेलर ने हाँ कर ली थी, बशर्ते आज शाम तक सारा मटिरियल उन्हें मिल जाये। 

मिन्नी  बैडरूम में ग ई तो वीरेंद्र करवट लेकर लेटा हुआ था।

  सो गये है क्या आप?

न हीं तो बोल क्या बात है? वीरेंद्र ने करवट पलट ली थी।
मुझे बाज़ार जाना है, शाम तक सारा मटिरियल देना है टेलर को।आप कहें तो मैं आटो लेकरचली जाऊँगी।

   ये नहीं कह सकती कि चलो बाज़ार, एक ईगो  को ज़िन्दा रखना है।

ऐसा कुछ नहीं है वीरेन, आप थके थे इस लिए ,और वो चुपचाप बाहर निकल ग ई थी।
   
वो बाहर बरामदे में आकर बैठ ग ई थी, उसे बैठे हुए लगभग आधा घंटा हो गया था। तभी वीरेंद्र के फोन की घंटी बजी थी, फोन सुनते ही अभी पहुंच रहा हूँ कहकर वो कमरे से बाहर निकला था।  

रात को खाना नहीं खाऊँगा मिन्नी। कहकर वो बाहर निकल  गया था।

मिन्नी को गुस्सा भी आया था पर वो कुछ बोली नहीं थी।
उसे पता था कि ये काम उसे ही करना है वरना होगा ही न हीं। उसने अंदर जाकर कपड़े बदले व गेट लाक करके बाज़ार चली ग ई थी।
शापिंग करते करते साढ सात बज ग ए थे।लेडी टेलर को सारा सामान देकर निकली तो याद आया, कल से तो नवरात्रि शुरू है। नवरात्रि का सामान खरीद ही रही थी कि वीरेंद्र का फोन आया। 

बाजार कब चलना है डियर?

मैं बाजार में ही हूँ और अब घर की तरफ जारही हूँ। कहकर मिन्नी ने फोन काट दिया।

घर पहुंची तो  देखा ताला बंद था,इस समय बंद ताला और अंधेरा कितना डरावना लगा था उसे। माँ जो नहीं थी आज,शायद कल ही आयेंगी।

उसने घर आकर हाथ मुँह धोकर मंदिर म़े दीया जलाया था।
चाय बनाकर पीने लगी ही थी कि रीति का फोन आ गया।
मंमा डाक्टर के पास नहीं ग ई ना?

अरे बेटा आज तो सारा दिन बहुत व्यस्त गुजरा पहले पूजा, फिर बाज़ार। अभी आई ही हूँ। बस चाय ही बनाई है।
कल चली जाना मंमी दवा का डोज बदलवाना बहुत जरूरी है।
पक्का बेटा, कल नौं बजे ही निकल जाँऊगी।

डिंकी और डुगू से भी बात हुई थी।

मंमी कल   से नवरात्रि हैं प्लीज़ फास्टिंग मत करना।आपकी तबियत ठीक नहीं है।

अच्छा नहीं करूंगी ,मिन्नी ने कह.तो दिया था पर ऊसके मन में था कि ज्यादा नहीं तो दो व्रत तो वो करेगी। रीति और डूगू का चयन किसी आशीर्वाद से कम नहीं था। फिर शुक्राना तो बनता ही है।

तभी गेट के बाहर गाड़ी की लाईट जली थी।वीरेंद्र.  आ गया था। वो गेट खोलने ग ई  थी। गाड़ी के अंदर आते ही उसने ताला लगा दिया था।

मिन्नी सारी डियर, आय एम टू मच ड्रंकड।

चुप्पी खीच ग ई थी उदास आँखों वाली लड़की,पर जितनी चुप्पी को पीती थी,आँखें उतनी ज्यादा और उदास हो जाती थी। एक समंदर रहता था उन आँखों में जो छलकता तो नहीं था पर छलकने को तैयार रहता था।

मैंने सारी बोला है मिन्नी।

जी।

कुछ बोलती क्यों नहीं हो?

क्या बोलूं?

मिन्नी बिजनेस के लिए पीनी पड़ी डियर, सारी, तूं नाराज़ मत हो चाहे झगड़ा कर ले। पर  कुछ बोल तो सही।

आप  के लिए दूध ले आऊँ, या?

तूं मेरे पास बैठ जा।

   आप प्लीज़ चेंज करके सो जायें, पानी रख दिया है, कपड़े भी रखे हैं। मैं दूसरे कमरे में सो रही हूँ। गुड नाईट।

सारी डियर गुड नाईट।

मिन्नी बच्चों के कमरे में जाकर सो ग ई थी। वीरेन को इस तरह देखकर कुछ खाया भी नहीं गया था,। दवाई और दूध लेकर सो ग ई थी वो। लेटते ही नींद भी आ ग ई थी। सुबह साढे चार बजे के करीब आँख खुली तो  एक हाथ उसके उपर रखा था।

वीरेन, वो एकदम चिल्लाई थीऔर उस हाथ को झटक कर बाहर की तरफ भागी थी।

मिन्नी क्या हुआ? वीरेंद्र एकदम उठ बैठा था। और उसके पास आ गया था।

वो बैड पे  मेरे पास कोई लेटा है।

मिन्नी पागल  हो ग ई है क्या, मैं ही तो सोया था  वहाँ।

देखो उसने लाईट आन कर दी थी, मिन्नी घबराई सी थी।

पर  आप तो बैडरूम में थे।

मैने कहा न बेगम अकेले नींद नहीं आती, शराब भी बेअसर हो जाती है। चल  सो जा, वरना सुबह फिर झगड़ा करोगी की नींद पूरी नहीं हुई। वीरेंद्र ने लाईट आफ कर दी थी। मिन्नी बेड पर लेट ग ई थी।वीरेंद्र ने दोबारा अपना हाथ उसके ऊपर रख लिया और सो गया।

मिन्नी की थकी आँखों से नींद जैसे कोसों दूर भाग ग ई थी।क्यों डरी वो क्या वो  वीरेंद्र का स्पर्श नहीं पहचान सकी,उसे तो कभी भी डर नहीं लगता था।तो क्या ये इस बीमारी या इन दवाईयों का  असर तो नहीं। परेशान सी मिन्नी को नींद नहीं आ र ही थी।वीरेंद्र सो चुका था। उसे वेसे ही नींद बहुत आती थी,और आज रात तो उसने ज्यादा ही पी रखी थी। उसनें अंधेरे कमरे में आँखे खोल कर चारो तरफ देखा एक अजीब सा सन्नाटा था जो उसे डरा रहा था।

वीरेन  वो फुसफुसाई थी,पर शायद वो गहरी नींद के आगोश में था। मिन्नी ने अपने उपर रखा उस का हाथ कसकर पकड़ लिया था। थोड़ी देर में उसे भी नींद आ ग ई थी।  सुबह अलार्म ने ही जगाया था। पाँच बज गये थे। उठ कर ब्रश किया और अपने लिए चाय बनाई थी।  सब्जी बना कर रख दी थी उसने., अंधेरा ही था बाहर अभी। खाने की तैयारी हो ग ई थी। आज सुबह जल्दी ही मेडिकल के लिए चली जाँऊगी, ताकि ज्यादा समय न लगे।परसो से स्कूल जाना भी शुरू करूंगी।  नहाकर पूजा की तैयारी की थी जौ वगैरह बोये थे। मिन्नी को ये नवरात्रि वाले दिन बहुत अच्छे लगते थे।शायद त्योहारों वाले दिन तो सभी को  ही अच्छे लगते थे।
उसकी पूजा खत्म ही हुई थी कि कमला भी आ ग ई थी।

  कमला खाने की सारी तैयारी हो ग ई है। तुम दूसरे काम देख लो। मैं साहब को चाय दे आती हूँ।

वीरेन उठो चाय पी लो। साढे सात बज ग ए हैं।

बजने दे,दस बजे से पहले नाम भी मत लेना मेरा, बहुत नींद आ रही है।

वो चुपचाप वापिस आ ग ई थी, वो जानती थी की वीरेंद्र अपनी नींद के साथ कभी समझौता नहीं कर सकती। कमला को सब समझा कर  वो तैयार होकर मेडिकल आ ग ई थी।जल्दी पहुंची थी तो पहला नम्बर उसी का ही आ गया था। डाक्टर से अपनी मानसिक स्थिति के बारे में बहुत तफ़सील से बात की थी उसनें। 

   आप यूंही परेशान है मैडम, कुछ घटनाएं हमारे जीवन मैं सामान्य तौरपर घटती हैं,.वो किसी बीमारी की परिचायक नहीं होती। आप बिलकुल ठीक है ,आपकी दवा की मात्रा आधी कर दी है।आप खुश रहें, योगा वगैरह भी करती रहें।

    मिन्नी डाक्टर का शुक्रि्या अदा करके बाहर निकली और स्कूल जाने वाला आटो ले लिया। स्कूल में सब से मिल कर और परसों से नियमित आने की बता कर वो वापिसी के लिए निकली और आटो पकड़ लिया था। फोन आन करना भूल ही ग ई थी।

वीरेंद्र उठ चुका था, माँ भी गाँव से  आ चुकी थी। 

वीरेंद्र  दो बार पूछ चुका था कमला से, कितनी देर में आने को बोल कर ग ई थी ।

साहब मुझे तो बस डाक्टर के पास जाने को बोल कर गई थी।
तभी मिन्नी बाहर से अंदर आई थी।

मुझे नहीं कह सकती थी, मैं चलता साथ में।

आपके पास टाईम कहाँ होता हैं ? 

बस हो जाओ शुरू सुबह सुबह।

वीरेन आप की किसी बात का जवाब दे दो तो दिक्कत न दो तो दिक्कत।

बकवास बंद कर ,क्या बोला डाक्टर?

तभी अंदर से माँ की आवाज़ आई थी,और कुछ नहीं तो अपनी उम्र का ही ख्याल कर लो, छोटे छोटे बच्चों की तरहं गेट पर ही शुरू  हो जाते हो।

अपने लाडले को भी समझा लिया करे माँ।किसी काम के लिए चलेंगे नहीं पर औपचारिकता इतनी दिखा देंगें कि बस पूछो ही मत।

आप कब आई माँ?

मैं तो नौं बजे ही आ ग ई थी बेटी, कमला ने बताया की तूं  डाक्टर के पास ग ई है। तेरा फोन भी बंद था। परेशान हो ग ई थी। क्या बोला डाक्टर?

दवा बदल दी है, माँ कह तो रहे हैं सब ठीक है।

चाय बना कर दे मुझे बारह बजने वाले हो ग ए हैं जाना भी है मुझे।
मिन्नी रसोई में जाकर चाय बना कर उसे देती है, वो सेब लेकर खाने के लिए काटती ही है कि वीरेंद्र अंदर आ जाता है, मिन्नी सुन कल के फंक्शन में तूं भाभी से बात कर लियो, क्योंकि फंक्शन अपने घर मे रखा   है, जरूरत पड़े तो माफी भी माँग लेना। मैं चाहता हूँ कि सारा परिवार एकजुट रहे।

     पर मैं किस चीज की माफी मागूं मेरी क्या गलती है, रही बात एक जुटता की ,तो गर मेरी वजह़ से आपके परिवार की एकजुटता टूटती है तो मैं ऊस फंक्शन में जाऊँगी ही नहीं।आप जानें और आपकी भाभीऔर आपका परिवार।

मिन्नी, वीरेंद्र का  हाथ उठते उठते रह.गया था।इसी उहापोह में उसके हाथ में चाकू लग गया था,ज्यादा ही कट गया था क्योंकि खून बह रहा था।

सेब को एक तफ फेंक कर वह.बाथरूम में घुस ग ई थी।

दिमाग़ खराब कर देगी सुबह सुबह बात कुछ भी हो।वो बड़बड़ कर रहा था कि माँ अंदर आई थी।

वीरू किस बात पर चिल्ला रहा है, अभी तो वो बीमारी से उठी हैऔर तूं फिर से पहले  की तरह़ शुरू  है गया हे।

मिन्नी  मिन्नी

कहिए माँ खून टपकते हाथ से बाहर निकली थी वो।

ये क्या हुआ है बेटा?

कुछ नहीं हुआ माँ,उसकी लाल और गीली आँखों ने जैसे माँ को सारा किस्सा ही सुना दिया था।

वीरू ये क्या हुआ बहू को।

इसी से पूछ ले न माँ, जिसे चाकू पकड़ने की भी तमीज़ नही  है।
चल बेटी डाक्टर के पास,माँ ने हाथ पकड़ते हुए कहा था।

रूक गया  है खून,कहीं नहीं जाना मुझे माँ।

  वीरेंद्र ने उठ कर  मेडिसन बाक्स से बेंडड निकाल कर मिन्नी का हाथ पकड़ कर जबर्दस्ती चिपका दी। 

मिन्नी  हाथ छुड़ा कर बच्चों के कमरे में चली गई थी। माँ वीरू से पूछ रही थी क्या बात  हुई है?

कुछ नहीं दिमाग खराब हो रखा  है इसका, मैंने कह दिया कल भाभी वगेरह से बात कर लेना, बडी है माफी  माँगने में भी कुछ नहीं जाता, परिवार की एकजुटता दिखती है।

किस चीज की माफी माँगेंगी वो? कौनसी एकजुटता दिखानी है तूने और किसको दिखानी है।अपने घर को संभाल ले  छोरा,वरना नतीजा  गलत होगा।अब तूं बच्चा नहीं रह गया, दो  बड़े बड़े बच्चों का बाप है। 

दीदी आपके लिए व्रत का कुछ बना दूं, कमला अंदर आई थी।

किसका व्रत है कमला?

दीदी का है अम्मा।

   बीमारी में क्यों व्रत किया इसने, वो उधर होगी बाहर, वहीं पूछ ले जाकर कमला।

जी अम्मा।

फोन की घंटी बजी थी

वीरू कहाँ है?

घर हूँ  , कौन बोल रहा है?

रामजस बोल रहा हूँ वीरू गाँव से,मेरे छोटे बेटे की बहू ने फाँसी खा ली। अभी अंतिम संस्कार भी नहीं किया है कि बेटे को पूलिस पकड़ कर ले ग ई है। 

आता हूँ चाचा  पहुंच रहा हूँ चिंता न कर।

क्या हुआ वीरू?

रामजस चाचा के बेटे की बहू ने फाँसी खा ली,उसके बेटे को पुलिस ले ग ई है।मुझे जाना होगा।

अपना घर संभाला न जाता, बाहर पंचायती बनेगा।

माँ क्यों ताने मारती हो, उस की गलती किसी को नहीं दिखती, विलेन बनाकर रख दिया है सभी ने। 

अब कपड़े तो निकाल दे मैडम,  जाना है मुझे।

कोई जवाब नहीं था उधर से।

  जा उसने मना ले बेटा घर की लक्ष्मी ने नाराज़ नहीं करया करते।

  मुझे देर हो रही है माँ।

वीरू बच्चों के कमरे की तरफ़ जाता है, मिन्नी लेटी पड़ी थी।
मेरा कुरता पायजामा निकाल दे गाँव में किसी की डेथ हो ग ई है, मुझे जाना होगा।

बिना उसकी तरफ़ देखे वोउठ कर  बैडरुम में जाकर उसके कपड़े निकाल देती हैऔ र वापिस आने लगती है तो वीरू हाथ पकड़ लेता है उसका।

मैं ऐसा क्या करूं जो तूं खूश रह सके।

पिस्टल है न आपके पास, निकाल दो एक गोली मेरे अंदर से, फिर सभी सुखी हो जायेंगें।आप भी और आप के  चाहनेवाले भी।

तेरे को तो सिवाय बकवास के कुछ नहीं सूझता। मुझे फिलहाल देर हो रही है निकलता हूँ मै। 

मिन्नी बच्चों के कमरे में ही लेट जाती हे। गाड़ी  चली ग ई थी।तभी फोन की घंटी बजती है। रीति का फोन था।

मंमा डाक्टर के पास गये थे।

गई थी बेटा ,दवा आधी कर दी है उन्होंने।

अच्छा  मंमा अपना ख्याल रखना।योगा करती रहना।

तुम आ रही हो न रीति आज।

सारी मंमा  थोड़ी देर में चंडीगढ़ के लिए निकलूंगी। मुझे तीनचार दिन शायद वहीं लग जायें।

तेरा ड्रेस भी तैयार हो गया था बच्ची।

कोई बात न हीं मंमा फिर कभी पहन लूंगी।जाना जरूरी हे।शायद ट्रेनिंग  जल्द शुरू होगी.।

तुम्हारी आगे की तैयारी चालू रखना बेटा।

मंमी एक सीढ़ी मिल ग ई है,जल्द ही छत को भी ढूंढ लेंगे।

मंमा एक बात कहनीथी आपसे,प्लीज़ ।

बोल  न रीति तुम्हें कुछ कहनेके लिए मुझसे प्लीज़ बोलना पड़ेगा।

उस दिन शोरूम के बाहर जो शख्स  मिला था वो?

वो तुम्हारे पिता हैं रीति।

मैं जानती थी मंमी, उनके बातचीत से ही लग गया था। हाँ उन्होंने मेरा नम्बर ढूंढवा कर फोन किया था।  बोले रीतिका,
मुझे मेरी गलतियों के लिए माफ कर दो। मैं आज भी पूरे सम्मान के साथ अपनी बेटी स्वीकार  करने के लिए  तैयार हूँ, ज़िंदगी के कुछ लम्हों को तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ।

मैंने उन्हें बता दिया कि जब  किसी बाप को अपनी  बेटी का  फोन नम्बर सरकारी लिस्ट से ढूंढवाना  पड़ेतो आप खुद सोचे सर उस रिश्ते में कितनी साँसें बची होंगी। 

उन्होंने मुझे कहा कि ये नम्बर जिस से मैं तुमसे बात कर रहा हूँ हमेशां तुम्हारे फोन का इंतजार करेगा बेटा। 

और फोन बंद हो गया।

इधर सन्नाटा था।

मंमा मंमा

हाँ रीति

क्या हुआ?

कुछ नहीं तुमसे एक बात कहूँ, उस नम्बर को संभाल कर रखना। वो पापा है तुम्हारे।

पापा की जरूरत बचपन में पड़ती  है मंमी, फिर एक उम्र होती है ,  टीन ऐज, उन दोनों मोड़ों पर वो कहीं भी नहीं थे।अब तो मैं बहुत बड़ी हो ग ई हूँ मंमा।

मंमी टापिक बदल रही हूँ, डुग्गु आ  रहा है, अब हम दोनो घर जायेंगे, फिर हम सब बस अड्डे पे आकर अपनी अपनी बसे ले लेंगे। ये दोनों आपके पास और मैं चंडीगढ़। नानी कुछ दिन स्कूल रहेंगी। 

दीदी किस से बात कर रही हो?

मंमी से।

मंमी डूगू इज कमिंग। वो चिल्लाया था।

मंमी वेंटिग बेटा।

पता नहीं कब मिन्नी सो ग ई थी,सोचते सोचते, रीति, उसके पिता, वीरेन का गुस्सा।

शाम  तक सोती ही रही थी।   बचपन के खिलखिलाने की आवाज़ से उसकी नींद टूटी थी,डिंकी और डुगू मंमा कहते हुए दोनों लिपट ग ए थे उससे।

मेरे डिंकी डुग्गू। क्या खाओगे?

मंमी चूरमा बना दो डूगू बोला था।

नहीं मंमा खीर वो भी कढ़ाई वाली।

ओकेओके दोनों चीजें बना दूंगी।


तभी  माँ अंदर आई थी।जगा दिया तुम दोनों ने मंमी को।

दादी चटनी ?

अरे भ ई आलू उबल रह़े है तभी तो बनेगी।

तो तुम काफी देर से आये हुए हो।

आधा घंटा हो गया मंमा।

मिन्नी को जैसे कुछ याद आया था, डुग्गू आज हम देवी मंदिर चलेंगे।
जी मंमा।
वो खड़ी हो ग ई थी बेग से पैसे  निकाल कर डुग्गू को दिए थे, जा सामने स्टोर से दूध के पैकेट ले आ, खीर बनाती हूँ।

आप ठीक हैं न मंमा। डिंकी ने पूछा था।

बिल्कुल ठीक हूँ बेटा।

पापा कहाँ हे?

गाँव  की कहकर गये थे।

डुग्गु दूध ले आया था, मिन्नी ने खीर चढ़ा दी थी,उसने अपने और माँ के लिए चाय बनाई थी।

दादी चूरमा भी बनाना। डुगू ने कहा था।

अरे सब  बनाऊंगी बेटा।
तभी मिन्नी  कपड़े बदलकर आ ग ई थी। चल डुग्गू मंदिर चलते हैं।

माँ खीर संभाल लेना, डिंकी दादी की मदद करना बेटी।

  मंमी बाइक की चाबी दो

आटो में चलते हैं न बच्चे।

मंमी प्लीज़।

अच्छा चल तो।
  
वीरेंद्र गाँव में दाह संस्कार निपटवा कर थाने में आया था। बदहवास सी हालत में था चाचा रामजस का बेटा सुधीर।
उसे देखते ही सलाखों के पीछे से भागा था उस  की तरफ।
वीरू ,वीरूभाई गाँव से आया है क्या?

वीरेंद्र उस की तरफ गया था।

भाई मेरे को इन पुलिस वालों से एक घंटे की मोहलत दिलवा दे। मैं सुनीता को मना लूंगा। यार किसके घर में झगड़ा नहीं होता,वीरू भाई। कल दिमाग़ खराब था एक थप्पड़ मार दिया था मैने।ये लोग कह रहे हैं कि मैने मर्डर  किया है उसका। भाई फोन मिला के बात करवा दे।मेरे पास फोन नहीं  है।
वो परेशान होगी मेरे लिए। वीरू बोलता क्यों नहीं भाई.?

   शान्ति रख सुधीर। सब ठीक होगा।

गाँव के दो बंदें और भी आ चुके थे थाने में। सुधीर की पागलों जैसी बाते सुनकर उसके चाचा ने कह ही दिया था, मर ग ई तेरी सुनीता, फाँसी खाली उसने।

चाचा , उसने अपना सिर दिवार पर दे मारा था। बहुत भयावह और दर्द नाक दृश्य था। वीरु अंदर तक हिल गया था। पुलिस की टीम तुरंत  सुधीर  को अस्पताल ले ग ई थी। वीरू भी साथ गया था। डाक्टर ने उसकी मानसिक हालत देखते हुए उसे नींद की दवा देकर दाखिल कर लिया था ।वीरू भी घर आ गया था।
माँ ने आते ही नहाने को कहा था।

डिंकी ने पापा को कपड़े निकाल दिए थे।

डुग्गु और मंमा कहाँ है तेरी?

मंदिर ग ए है पापा देवी मंदिर।

बाइक पर?

   क्या जरूरत थी  शाम को बाईक से जाने की, उसको कहीं फिर चक्कर आ गया तो। 

परेशान सा वीरू बाथरूम में  घुस गया था।

नहाकर निकला तो डिंकी ने चाय दी थी, बेटी के सिर पर हाथ रखकर थैंक्स बोला था।

कितनी देर हो ग ई है तेरी मंमी को ग ए हुए?

पापा दो घंटे हो ग ए हैं।मैं फोन करती हूँ।

नहीं रहने दे ,बाइक पर हैं दोनों। मैं जाता हूँ गाड़ी लेकर।

डिकीं  ने अपने पापा को इतना परेशान कभी नहीं देखा था।

बाइक रूकने की आवाज़ से वीरू की आँखों में जैसे ज़िंदगी जिंदा हो ग ई थी। डिकीं ने  गेट खोला था।मिन्नी अंदर आ ग ई थी।  सारा प्रसाद माँ को दे दिया था। माँ ने कुछ प्रसाद रख बाकी कमला को दे दिया था बाहर  बटवाने के लिए। मिन्नी ने अपने मंदिर में दीया जलाया था। वो कपड़े बद्ल  चुकीथी। 

मंमा चले अब कुछ खालें,आपने नवरात्रि का व्रत रखा है ना।
     
पहले तुम लोग खा लो बेटा।

मैंने तो खा लिया है  मंमी, पापा आप और डुग्गु रह ग ए हैं।
डुग्गु खीर बन ग ई है। बहुत टेस्टी है, बिल्कुल बरफी जैसी।

और चूरमा?

वो भी तैयार है बेटा, दादी ने आवाज दी थी। आजा  तूं मेरे पास।

मिन्नी 

मंमी पापा बुला रहें हैं।

चुपचाप अंदर चली गई थी।

  चुपचुप सा गुमसुम सा वीरू छत को तांक रहा था।

कहिए क्या कह रहे थे?

मिन्नी , खाना डाल दे।

मिन्नी कुछ हैरान सी बाहर चली गई थी सिर्फ  खाने के लिए उसे  बुलाना फिर इतने आराम से कहना।

क्या हो गया है इन्हें?

वो रसोई में आती है, माँ इन का भी  दे दो खाना, माँ हाथ  की रोटी बना रही थी।
माँ
हाँ बोल?
आपके लाडले को क्या हुआ है, बहुत चुप है।

पूछ ले जाकर।

शेर की मांद में कौन हाथ डाले, आप तो खाना ही दे दो।

  मंमी खीर और दो न डिंकी आई थी।

दादी से ले लो, मैं पापा को खाना देने जा रही हूँ।

  उठिये खाना खा लीजिए।

वो चुपचाप खाना खाने लगा।

एक रोटी ही खाई थी कि  थाली रख दी थी।मिन्नी दोबारा लेकर ग ई तो हैरान रह गई , खाना  वैसे ही रखा था और वीरेन ने हाथ धो लिए थे।

क्यु हुआ कुछ और बना दूं क्या।

नहीं बस हो गया। भूख नहीं है।

तूने खा लिया?

मेरा फास्ट है अभी खाऊँगी।

सोना यहीं गर बच्चों के पास सोना हो तो मेरा फोल्डिंग भी वहीं डलवा देना।

जी।

क्या हो गया है इन्हें?

कमला ने उसके लिए फलाहार बना दिया था। माँ भी  खा रही थी। वीरेंद्र ने बच्चों को आवाज़ दी थी। बच्चे उस के पास चले ग ए थे।
माँ क्या हुआ है इन्हें?  इतने गुस्से में रहने वाला इतना शान्त।

  मिन्नी ने खाना खाया और रसोई समेटने में कमला की मदद की।
बच्चे दादी के पास उन्हीं के कमरे में सो ग ए थे। डूग्गु को सुबह  मेराथन के लिए जाना था। जो कि स्टेडियम की तरफ से आयोजित था।उसे भी बुलाया गया था।

मिन्नी थोड़ी देर बच्चों के पास बैठकर सोने चली गई थी।कमरे में धूंआ सा भरा हुआ था।

अभी भी सिगरेट जला ही रखी थी वीरेन ने।

खिड़की खोल दूं और पंखा चला दूं.दो मिनिट के लिए, दम घुट रहा है।

वीरेन ने हाथ  हिला कर सहमति दी थी,और बाकी सिगेरट भी बुझा दी थी।
  मिन्नी ने पंखा चलाकर खि ड़की खोल दी थी। कुछ देर में ही कमरा साफ हो गया था।

दूध ले आऊँ आपके लिए.?

रहने दे आज मन नहीं  है।

क्या हुआ है वीरेन?खाना भी नहीं खाया और अब दूध भी नहीं।
कुछ न ह़ी हुआ, सो जा आकर। सुबह डूग्गु को जल्दी जाना है मेराथन  के लिए । मैं जाऊँगा छोड़ आऊँगा।

  ये बात  आठवें आश्चर्य से कम न थी।

मिन्नी चुपचाप सो ग ई थी।  

औरत आदमी और छत
लेखिका, ललिता विम्मी
भिवानी, हरियाणा


   

   11
0 Comments